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सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, सहमति से बने संबंध में पार्टनर के खिलाफ नहीं लगा सकते रेप का आरोप

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले में एक शख्स के खिलाफ लगाए गए बलात्कार के आरोप को खारिज करते हुए साफ कहा है कि आपसी सहमति से बने संबंध में पार्टनर के खिलाफ रेप का आरोप नहीं लगाया जा सकता है. इस मामले में एक महिला के शादी के पहले एक शख्स से संबंध थे और यहां तक ​​​​कि महिला ने इसके कारण तलाक ले लिया. महिला का तलाक होने के बाद भी उसके किसी इस शख्स से लंबे समय से आपसी सहमति के संबंध थे. बाद में जब पुरुष ने किसी और महिला से शादी कर ली और बार-बार दबाव डालने के बावजूद तलाक नहीं लिया तो उसके खिलाफ रेप के मामले की एफआईआर दर्ज कराई गई।

एक खबर के मुताबिक बलिया की शिकायतकर्ता महिला ने मजिस्ट्रेट के सामने अपने बयान में कहा था कि वह 2013 में उस व्यक्ति के संपर्क में आई थी और उनके बीच संबंध बन गए. उसने जून 2014 में एक अन्य पुरुष से शादी कर ली, लेकिन पिछले आदमी के साथ अपने रिश्ते को जारी रखा. उसने दावा किया कि उसने अपने प्रेमी के कहने पर तलाक ले लिया. तलाक लेने के बाद उसने अपने रिश्ते को आगे बढ़ाया. जबकि उस व्यक्ति ने दिसंबर 2017 में किसी और महिला से शादी कर ली. वादा करने के बावजूद जब शख्स ने अपनी शादी नहीं तोड़ी, तो उसने उस व्यक्ति पर शादी का वादा करके यौन उत्पीड़न करने का आरोप लगाते हुए शिकायत दर्ज कराई. पुलिस ने उस व्यक्ति के खिलाफ धारा 376 के तहत एफआईआर दर्ज की और फिर आरोप पत्र दायर किया।

निचली अदालत और इलाहाबाद उच्च न्यायालय में मामले को रद्द कर दिया गया, जिसके बाद महिला ने उच्चतम न्यायालय का रुख किया. न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना की पीठ ने पिछले हफ्ते कहा कि उच्च न्यायालय इस बात की जांच करने में विफल रहा कि क्या महिला द्वारा दर्ज प्राथमिकी में प्रथम दृष्टया मामला बनता है. पीठ ने कहा कि बेशक आरोपी और महिला के बीच 2013 से दिसंबर 2017 तक सहमति से संबंध थे. वे दोनों शिक्षित बालिग हैं. इसी दौरान महिला ने जून 2014 में किसी और से शादी कर ली. महिला के आरोपों से संकेत मिलता है कि आरोपी के साथ उसका संबंध उसकी शादी से पहले, शादी के दौरान और तलाक के बाद भी जारी रहा।

पीठ ने कहा कि इस पृष्ठभूमि में और शिकायत में आरोपों को देखते हुए एफआईआर या चार्जशीट में धारा 376 आईपीसी के तहत रेप के अपराध के तत्व को पाना असंभव है. महत्वपूर्ण मुद्दा जिस पर विचार किया जाना है, वह यह है कि क्या आरोपों से संकेत मिलता है कि आरोपी ने महिला से शादी करने का वादा किया था जो कि शुरू में झूठा था और जिसके आधार पर उसे यौन संबंध बनाने के लिए प्रेरित किया गया था. जस्टिस चंद्रचूड़ और बोपन्ना ने एफआईआर और चार्जशीट की बारीकी से जांच की और कहा कि धारा 375 (बलात्कार) के तहत परिभाषित अपराध के महत्वपूर्ण तत्व शिकायत में मौजूद नहीं हैं. उन्होंने कहा कि दोनों के बीच संबंध विशुद्ध रूप से सहमति की प्रकृति के थे और मामले को रद्द कर दिया।

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