कभी भी और कहीं भी बैंकिंग सुविधा: ग्रामीण भारत की तस्वीर बदलते डाकघर
गौतम भट्टाचार्य
वित्त मंत्री ने इस वर्ष के बजट भाषण में कहा कि देश के 1,50,000 डाकघर कोर बैंकिंग प्रणाली से जुड़ जायेंगे, जो नेट बैंकिंग, मोबाइल बैंकिंग व एटीएम के माध्यम से बैंक-खातों तक पहुंचने तथा वित्तीय समावेश की सुविधा प्रदान करेंगे एवं डाकघर खातों और बैंक खातों के बीच धन अंतरण को संभव बनायेंगे। डाकघर खातों और बैंक खातों के बीच अंतर-संचालन की घोषणा, विशेष रूप से ग्रामीण भारत में युवा पीढ़ी की लंबे समय से प्रतीक्षित आकांक्षा ‘बैंकिंग सुविधा, कभी भी कहीं भी’ के लिए आशा की नयी किरण के समान है। कभी भी, कहीं भी बैंकिंग; खाताधारक को देश में कहीं से भी बैंक-कार्य करने की सुविधा प्रदान करती है, चाहे उसका डाकघर या उसकी बैंक-शाखा किसी भी जगह पर स्थित हो और उस कार्यालय का कार्य समय, चाहे कुछ भी हो।
शहरी भारत कई सुविधाओं, जैसे एटीएम, धनराशि का तत्काल अंतरण, सममूल्य पर चेक आदि के माध्यम से इस अवधारणा से अच्छी तरह परिचित है। लगभग डेढ़ दशक पहले, कभी भी, कहीं भी बैंकिंग पर आधारित कार्यशैली को भारत के अधिकांश पीएसयू बैंकों द्वारा लागू किया गया था। हम एक कदम और आगे बढऩे में सफल हुए, जब आरबीआई द्वारा स्थापित भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम (एनपीसीआई) ने सभी खुदरा लेन-देन के लिए एकीकृत भुगतान इंटरफेस (यूपीआई) विकसित किया। शहरी भारत के ग्राहक अब टैक्सी-चालक को भुगतान कर सकते हैं, किराने की दुकान में अपने बकाये की रकम जमा कर सकते हैं, धोबी को सीधे अपने बैंक-खातों से भुगतान कर सकते हैं, शर्त केवल यह है कि दोनों के पास स्मार्टफोन हों और उनके बैंक खाते फोन से जुड़े हों। हालांकि, इस दौरान ग्रामीण भारत में, जहाँ ज्यादातर बैंक-कार्य डाकघर खातों के माध्यम से किये जाते हैं, बैंकिंग अपने पारंपरिक तरीकों से चलती रही।
भारत में प्रमुख सार्वजनिक बैंकों द्वारा सीबीएस शुरू करने के लगभग एक दशक बाद, यानि 2014 के आसपास, करीब 25,000 विभागीय डाकघरों में कोर बैंकिंग प्रणाली (सीबीएस) पर काम की शुरुआत हुई। 2018 तक, लगभग 85 प्रतिशत डाकघरों को सीबीएस के तहत लाया गया, लेकिन शेष डाकघरों में इंटरनेट की सुविधा नहीं थी। उस वर्ष सबसे चुनौतीपूर्ण कार्य शुरू हुआ था: 1,30,000 से अधिक ग्रामीण शाखा डाकघरों को सीबीएस डाकघरों के साथ एकीकृत करना। ग्रामीण शाखा कार्यालय दिन में चार से पांच घंटे खुले रहते हैं और प्रखंड या तालुका मुख्यालय में स्थित निकटतम विभागीय कार्यालयों के विस्तार काउंटर की तरह काम करते हैं। इन कार्यालयों का संचालन ग्रामीण डाक सेवकों (जीडीएस) द्वारा किया जाता है। इन शाखा कार्यालयों को इंटरनेट के माध्यम से रिमोट सर्वर से जोडऩे के लिए सिम आधारित हथेली के आकार के छोटे (हैंडहेल्ड) उपकरण प्रदान किए गए थे। संचालन कार्य के लिए लगभग 2 लाख ग्रामीण डाक सेवकों को प्रशिक्षित किया गया।
2021 तक एकीकृत कोर बैंकिंग प्रणाली से लगभग 93 प्रतिशत डाक नेटवर्क जुड़ गया। इससे एमजी-नरेगा के भुगतान, डाक जीवन बीमा (पीएलआई) और ग्रामीण पीएलआई आदि के प्रीमियम के संग्रह सहित विभिन्न सामाजिक योजनाओं के लाभार्थियों के खातों को प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (डीबीटी) की सुविधा मिली। ग्रामीण डाक सेवकों ने ग्रामीण शाखा डाकघरों के खाताधारकों के बीच डिजिटल लेन-देन को बढ़ावा देने में पिछले तीन वर्षों में ऐसे कार्य किये हैं, जिन्हें चमत्कार से कम नहीं कहा जा सकता है। भारतीय डाक की वार्षिक रिपोर्ट (2020-21) के अनुसार, कुल 53,584 करोड़ रुपये के 43 करोड़ ऑनलाइन लेन-देन ग्रामीण शाखा डाकघरों में इन हैंडहेल्ड उपकरणों के माध्यम से पूरे किये गए।
हालांकि इसके प्रभाव का कोई औपचारिक अध्ययन नहीं किया गया है, लेकिन मोटे तौर पर ऐसा लगता है कि देश की कोर बैंकिंग प्रणाली के साथ 1,30,000 ग्रामीण शाखा डाकघरों का एकीकरण; ग्रामीण भारत पर वैसा ही असर डालेगा, जैसा 1980 के दशक के मध्य में कम्प्यूटरीकृत रेलवे आरक्षण बुकिंग की सुविधा से शहरी भारत पर पड़ा था। लगभग चार दशक पहले शहरों और कस्बों के लोगों ने कम्प्यूटरीकृत आरक्षण प्रणाली की बहुत सराहना की थी। ग्रामीण डाक सेवकों के पास ज्ञान और विश्वसनीयता है, जिसकी सहायता से वे ग्रामीण लोगों को डिजिटल लेन-देन के लिए बढ़ावा दे सकते हैं।
हालांकि, पहली बार में अंडमान और निकोबार के दूरदराज के द्वीपों एवं हिमालय की अधिक ऊंचाई पर स्थित कई डाकघरों को सीबीएस में एकीकृत नहीं किया जा सका, क्योंकि इंटरनेट की स्तरीय सुविधा उपलब्ध नहीं थी। इस स्थिति में धीरे-धीरे सुधार हो रहा है। अंडमान और निकोबार के विभिन्न द्वीपों को हाल ही में चेन्नई के साथ ऑप्टिकल फाइबर केबल के माध्यम से जोड़ा गया है, जिसे समुद्र तल पर बिछाया गया है। इसने दूरदराज के द्वीपों में स्थित कार्यालयों को सीबीएस के साथ एकीकृत करने की सुविधा प्रदान की है। पिछले कुछ वर्षों की इन सभी पहलों के आधार पर सरकार ने घोषणा करते हुए कहा है कि इस वर्ष के अंत तक सभी डाकघरों का कोर बैंकिंग प्रणाली के साथ एकीकरण पूरा कर लिया जाएगा।
पहले डाकघर खाताधारक अपने खाते से किसी बैंक खाते में और किसी बैंक खाते से डाकघर खाते में धनराशि अंतरण नहीं कर सकते हैं। भारतीय रिजर्व बैंक ने अब डाकघर बचत योजना खातों के लिए एनईएफटी/आरटीजीएस जैसी अंतर-बैंक लेन-देन सुविधाओं की अनुमति दी है। यह डाकघर खातों और बैंक खातों के बीच धन के ऑनलाइन अंतरण को सक्षम बनाएगा। यह अंतर-संचालन, बैंक के खाताधारक को उसके पीपीएफ खाते या डाकघर के सुकन्या समृद्धि खाते (एसएसए) में धनराशि अंतरण की सुविधा प्रदान करेगा।
छोटे शहरों और ग्रामीण भारत में ग्राहकों की उम्मीदें तेजी से बदल रही हैं। डाकघर बैंकिंग प्रणाली को आधुनिक पीढ़ी की अपेक्षाओं के अनुरूप आधुनिक बनना होगा। डाकघर खाते के ग्राहक के पास निकटतम विभागीय डाकघर जाने, बचत प्रमाणपत्र खाते खोलने/बंद करने या पीपीएफ, एमआईएस या वरिष्ठ नागरिक खाता खोलने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। एक ग्रामीण के लिए इसका मतलब था- एक दिन का नुकसान और परिवहन खर्च। आज भी डाकघर में बचत खाता खुलवाने पर ग्राहक को एटीएम कार्ड या चेकबुक के लिए अनुरोध करना होता है। इस तरह की जरूरी सुविधाएं, खाताधारक को शायद ही कभी अपने-आप दी जातीं हैं। डाक विभाग द्वारा सममूल्य-चेक की सुविधा को भी लागू करने की आवश्यकता है। आशा की जाती है कि डाकघर की उन्नत नेट बैंकिंग/मोबाइल बैंकिंग प्रणाली; किसी भी समय, कहीं से भी बैंकिंग के कार्यान्वयन से जुड़ी सभी कमियों को दूर करेगी और इस लक्ष्य को सही अर्थों में हासिल करेगी।
लेखक पूर्व सिविल अधिकारी, जो सेवानिवृत्ति के समय अपर सचिव, भारत सरकार की श्रेणी में थे। भट्टाचार्य ने प्रेसीडेंसी कॉलेज, कलकत्ता विश्वविद्यालय और भारतीय सांख्यिकी संस्थान में अर्थशास्त्र का अध्ययन किया और ईपीएफएल, लूसाने और अंतर्राष्ट्रीय भ्रष्टाचार विरोधी अकादमी, वियना में पेशेवर प्रशिक्षण प्राप्त किया। सरकार की उच्च सिविल सेवा में शामिल होने से पहले, वे दो विश्वविद्यालयों में अर्थशास्त्र के स्नातकोत्तर छात्रों को पढ़ाते थे।