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गोवंश का दंश

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में जब कोई लहर प्रभावी होती नजर नहीं आ रही है तो स्थानीय मुद्दे हावी होने लगे हैं। इन मुद्दों में किसानों व आम लोगों की मुसीबतों का सबब बने आवारा पशुओं का मुद्दा अब भाजपा की टेंशन की वजह बनता जा रहा है। सपा व कांग्रेस ने इस मुद्दे को भांपते हुए जमकर चुनाव सभाओं में उछाला। मुद्दे की गंभीरता को भाजपा ने देर से समझा। तीसरे चरण के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कहना पड़ा कि मेरे शब्द लिखकर रखिये जो पशु दूध नहीं देता, उसके गोबर से भी आय हो, ऐसी व्यवस्था आपके सामने खड़ी कर दूंगा। दस मार्च के बाद हम ऐसी व्यवस्था लाएंगे कि लोगों के लिये ये आवारा पशु लाभ का जरिया बनेंगे। उन्होंने कहा कि बनारस में बन रहे बायो सीएनजी प्लांट के लिये गोबर की खरीद शुरू होगी। हम इस समस्या का ऐसा समाधान निकालेंगे कि लोग घर लाकर गोवंश को बांधेंगे।

राजनीतिक पंडित कह रहे हैं कि जनता के मूड को भांपने वाले प्रधानमंत्री यदि समय रहते यह बाण चला देते तो ग्रामीण क्षेत्रों में भाजपा को इसका लाभ मिलता। बहरहाल, उ.प्र. के चुनाव में आवारा पशु अब बड़ा मुद्दा है। विपक्ष हमलावर है और सत्तारूढ़ दल बचाव की मुद्रा में है। यही वजह है कि पश्चिम उ.प्र. में चले पलायन, धर्मांतरण, जिन्ना-गन्ना व पाकिस्तान के मुद्दे अवध व पूर्वांचल पहुंचते-पहुंचते छुट्टे जानवरों पर केंद्रित हो गये हैं। दरअसल, ये आवारा जानवर, जिन्हें स्थानीय भाषा में छुट्टा जानवर कहा जाता है, सडक़ से लेकर खेत तक मुसीबत का सबब बने हुए हैं, जिसे सपा सरकार की नाकामी की तरह पेश कर रही है। बाकायदा अखिलेश यादव ने कहा कि यदि उनकी सरकार आई तो आवारा पशुओं की वजह से मरने वाले लोगों को पांच लाख रुपये का मुआवजा दिया जायेगा। प्रतिरोध के चलते बाराबंकी में सीएम की एक सभा में छुट्टे जानवरों को छोडक़र विरोध भी जताने की बात सामने आई, जिससे स्थिति की गंभीरता का अहसास होता है।

दरअसल, आवारा पशुओं की समस्या नई नहीं है, लेकिन 2017 में भाजपा सरकार बनने के बाद इस समस्या में तेजी से इजाफा हुआ। वैसे तो गोवंश की रक्षा भाजपा का प्रमुख एजेंडा रहा है। वहीं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का गोवंश प्रेम जगजाहिर है। सरकार बनने के बाद राज्य में अवैध बूचडख़ानों पर रोक लगाई गई, जिससे अवैध रूप से गायों को काटना रुका। यूं तो सरकार ने गोवंश की सुरक्षा, स्वास्थ्य व देखभाल के कई बड़े फैसले लिये। बड़े पैमाने पर गोशालाओं का बड़ी संख्या में निर्माण किया गया। वर्ष 2019-20 में गोशालाओं के लिये 248 करोड़ का बजट आवंटित हुआ। राज्य में 570 गोशालाएं पंजीकृत हैं। संरक्षण की कान्हा उपवन योजना शुरू की गई। लेकिन संख्या को देखते हुए बजट पर्याप्त न होने की बात कही जा रही है। दरअसल, जब गाय दूध देना बंद कर देती है तो लोग उसे खुला छोड़ देते हैं। योगी सरकार की सख्ती के कारण उसकी बिक्री बाजारों में नहीं हो पा रही है। वहीं खेती की नई व्यवस्था में बैल की कोई जगह नहीं है। बछड़ों को छोड़ दिया जाता है।

ये छुट्टे जानवर खेतों में खड़ी फसलों को निशाना बनाते हैं। किसान दिन में खेती करते हैं और रात में फसलों की रखवाली करते हैं। उन्हें खेतों की सुरक्षा के लिये कंटीली तारों पर लाखों रुपये खर्च करने पड़ते हैं। इतना ही नहीं, आवारा पशुओं की वजह से सडक़ों पर लगातार दुर्घटनाओं का खतरा बना रहता है। खासकर एक्सप्रेस-वे और फोर लेन वाली सडक़ों पर यह खतरा ज्यादा रहता है जहां वाहन तेज गति से चलते हैं। अब ग्रामीण इलाकों में लोगों के गुस्से को देखते हुए अमेठी की जनसभा में योगी आदित्यनाथ ने घोषणा की है कि नई सरकार बनने के बाद नौ सौ से हजार रुपये किसानों को पशुओं की देखभाल के लिये दिये जाएंगे। आवारा पशुओं को गोद लेने वालों को भी इसका लाभ देने की बात कही जा रही है। आरोप लगाया कि सपा इसका समाधान बूचडख़ानों को अनुमति देकर करेगी। मगर भाजपा देर से जागी है।

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