वोकल फॉर लोकल पर खरे उतरते पत्रकार शिव प्रसाद सेमवाल, डोईवाला सीट पर यूकेडी के टिकट पर लड़ रहे हैं चुनाव
देहरादून। जाने-माने खोजी पत्रकार शिव प्रसाद सेमवाल उत्तराखंड में किसी पहचान के मोहताज नहीं है। हमेशा कलम के जरिए राजनीति में व्याप्त भ्रष्टाचार व राजनेताओं पर कड़ा प्रहार करने वाले सेमवाल खुद राजनीति में आ गये। यहीं नहीं यूकेडी के टिकट पर डोईवाला से चुनावी दंगल में है। सेमवाल कहते हैं कि में सत्ता की मलाई खाने नहीं बद्लाव की शुरूआत करने के लिए राजनीति में आया हूं। इसके लिए मैने उस दल को चुना जिसने राज्य निर्माण में अहम भूमिका निभाई और हाशिए पर है। हम सबकी जिम्मेदारी है कि हम क्षेत्रीय दल को मजबूत करें। देश के जिस भी राज्य में क्षेत्रीय दल की स्थिति मजबूत होगी उस राज्य में मूलभूत समस्याएं नहीं होंगी। सेमवाल कहते हैं उन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत की नीति रीतियों व उन पर लग रहे तमाम आरोपों के बाद डोईवाला से चुनावी ताल ठोकी थी। लेकिन उससे पहले ही त्रिवेन्द्र सिंह रावत पूर्व मुख्यमंत्री हो गये और अब वह चुनाव मैदान छोड़कर ही भाग गए। मैं लंबे समय से डोईवाला की जनता के बीच हैं। जहां वह घर-घर यूकेडी अभियान के तहत घर घर संपर्क साध कर आम जनमानस को यूकेडी और अपनी रीति नीतियों से अवगत करा रहे हूं।
शिव प्रसाद सेमवाल कहते हैं जब तक दिल्ली वाले दलों के बड़े नेताओं की कृपा पर टिकट तय होगा, मंत्री पद और मंत्रालय तय होंगे, राज्यमंत्री व दायित्वधारी तय होते रहेंगे, तब तक वे उन्ही के इशारे पर उन्हीं के लोगों की चाकरी करने को विवश रहेंगे। रोजगार उनके, ठेकेदारी उनकी, मशीनें उनकी, हम बस रुटफराते रहेंगे। इसीलिए पार्टियों का बचाव मत कीजिए, राज्य का बचाव कीजिए। शेष जैसी प्रजा वैसे राजा। सेमवाल कहते हैं डोईवाला के लोग पिछले 20 सालों से एक जैसी समस्याओं से जूझ रहे हैं लेकिन कांग्रेस और भाजपा ने 10-10 साल राज करने के बावजूद पेयजल, सार्वजनिक, नालियों के निर्माण जैसी समस्याओं का भी समाधान नहीं किया। क्षेत्र में लोग लो वोल्टेज की समस्या से भी बहुत परेशान हैं।
यूकेडी प्रत्याशी शिव प्रसाद सेमवाल के मुताबिक लोगों में इस बार वोकल फॉर लोकल का बहुत रुझान है और लोग भी चाहते हैं कि 20 साल से दिल्ली वाले दलों की सरकारें देखने के बाद इस बार लोकल पार्टी और लोकल प्रत्याशी को चुना जाना चाहिए। महिलाएं सबसे ज्यादा दुखी और प्रभावित महसूस करती हैं, जब उनके परिवार में उनके बेटे भाई अथवा पिता और अन्य नाते रिश्तेदारों को कोई कष्ट होता है। प्रदेश में बढ़ रही बेरोजगारी महंगाई और नशाखोरी से महिलाएं सबसे ज्यादा गुस्सा हैं और इस बार हमारी माताओं बहनों को भी यह बात बड़ी शिद्दत से महसूस होती है कि..क्षेत्रीय दल ही आम जनता की उम्मीदों को पूरा कर सकते हैं।