वायरस के नये रूपांतरण की चुनौती
दिनेश सी. शर्मा
पिछले सप्ताह, जब से कोरोना वायरस के नये रूप की पुष्टि हुई है, पूरी दुनिया में चिन्ता की लहर दौड़ गई है। गत 9 नवम्बर को बी.1.1.529 नामक इस रूपांतर के पहले मामले का दक्षिण अफ्रीका को जब पता चला, वह पहले ही डेल्टा वेरियंट से बने केसों की भरमार से जूझ रहा था। 24 नवम्बर को विश्व स्वास्थ्य संगठन को यह नया रूपांतर सूचित किया गया। इस वैश्विक मंच ने 26 नवम्बर को सार्स कोव-2 पर बनाए तकनीकी सलाहकार समूह की बैठक बुलाई। यह माहिरों का स्वतंत्र समूह है, जिसको वायरस के क्रमिक विकास, उससे बनते एक अथवा ज्यादा परिवर्तनों, निगरानी और असरात का आकलन करना सौंपा गया है। उपलब्ध सबूतों एवं डाटा के आधार पर और जिस तरह वायरस संरचना में बदलावों के बाद दक्षिण अफ्रीका के लगभग सभी प्रांतों से काफी संख्या में केस सामने आए हैं, इसे ओमीक्रॉन नाम देते हुए ‘चिंता का विषय’ श्रेणी में रखा गया। समूह के त्वरित निर्णय ने दुनियाभर में खलबली और घबराहट पैदा कर दी, शेयर बाज़ार में उथल-पुथल मची और कई देशों ने अंतर्राष्ट्रीय आवाजाही पर प्रतिबंध एवं निर्देशावली जारी कर दी है।
जिस फुर्ती से स्वास्थ्य एजेंसियों को नये रूपांतर का पता चलते ही विश्व स्वास्थ्य संगठन की समिति ने डाटा विश्लेषण किया है, वह तंत्र की सजगता दर्शाता है। नये वेरियंट की शिनाख्त सामान्य पीसीआर परीक्षण के दौरान हुई है। पॉजीटिव मामलों के सैम्पलों का टेस्ट करते वक्त लैबोरेटरियां वायरस की जिन तीन जीन्स पर मुख्य ध्यान केंद्रित रखती हैं, उनमें एक गायब है। यह कई जगह हुआ। जीनोम सिक्वेंसिंग ने स्पाइक प्रोटीन में हुए परिवर्तन की तस्दीक की। विश्व स्वास्थ्य संगठन के जिस विशेषज्ञ समूह ने विश्लेषण किया है, उसके अध्यक्ष भारतीय वैज्ञानिक प्रो. अनुराग अग्रवाल हैं, वह नयी दिल्ली स्थित सीएसआईआर के इंस्टीट्यूट ऑफ जीनोमिक्स एंड इंटिग्रेटिव बायोलॉजी के निदेशक हैं। बेशक इस समूह ने ओमीक्रॉन के शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता को चकमा देने वाला, अतिसंक्रामक और खतरनाक होने का अंदाज़ा लगाया है, किंतु साथ ही चेताया है कि इस आकलन के बारे में अभी काफी अनिश्चितता है।
इसमें संशय अनेकानेक हैं। पहला, इसकी प्रसार क्षमता को लेकर है। बेशक इसका अनुवांशिक तंत्र संकेत देता है कि यह डेल्टा वेरिएंट से ज्यादा संक्रामक हो सकता है, लेकिन फिलहाल मामलों की संख्या कम होने से कुछ पक्का नहीं है। हालांकि, जीनोमिक डाटा भी बताता है कि ओमीक्रॉन रोग-प्रतिरोधकता क्षमता को चकमा दे सकता है यानी टीकाकृत हुआ इंसान भी प्रभावित हो सकता है। यहां पुन: असमंजस है, क्योंकि हर वैक्सीन से अलग रोग-प्रतिरोधकता बनती है। कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि शायद निष्क्रिय वायरस से बनी वैक्सीन कारगर हो क्योंकि एमआरएनए वैक्सीन शरीर की रोग-प्रतिरोधक प्रतिक्रिया को उसके वंशानुक्रम के प्रति भी क्रियाशील कर देती है। किंतु ठोस सबूतों के अभाव में यह कहना फिलहाल समझ के हिसाब से लगाए गए कयास हैं। ओमीक्रॉन के बारे में अभी बहुत कुछ जानना बाकी है।
हालांकि, दक्षिण अफ्रीका ने सबसे पहले ओमीक्रॉन को उजागर किया है, कदाचित यह अन्य देशों में भी मौजूद होता, जहां शिनाख्त नहीं हुई थी। सबसे बड़ी अनिश्चितता शरीर पर ओमीक्रॉन के असर को लेकर है। क्या बीमारी नरम रहेगी, जिसमें अस्पताल में भरती होने और ऑक्सीजन लगाने की नौबत न बने? क्या ओमीक्रॉन खुद महामारी की दिशा बदल देगा? हमें ओमीक्रॉन की संरचना के बारे में अब काफी पता है, लेकिन इससे पैदा बीमारी, तीव्रता, शरीर की रोग-प्रतिक्रिया, एंडीबॉडी मारक क्षमता के बारे में ज्यादा मालूम नहीं है।
यही वजह है कि ओमीक्रॉन संबधित दुविधा से राष्ट्रों, राष्ट्रीय स्वास्थ्य तंत्र और लोगों के सामने गंभीर चुनौती बनी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने देशों को सतर्कता बरतने, परीक्षण बढ़ाने और अन्य वैज्ञानिकों से डाटा साझा करने को कहा है ताकि रूपांतरों से बेहतर ढंग से निपटा जा सके। किन्हीं इलाकों में बढ़ते मामलों का तुरंत संज्ञान लेना, अध्ययन और वास्तविक समय में टेस्ट करने पर विशेष ध्यान देने की सलाह दी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अभी आवागमन प्रतिबंध लगाने की सलाह नहीं दी है, किंतु अनेक देशों ने ओमीक्रॉन के आरंभिक मामलों वाले देशों से आने वाली उड़ानों को वर्जित कर दिया है। विडंबना है कि यह ऐसे वक्त पर करना पड़ा है जब अधिकांश देश सामान्य अंतर्राष्ट्रीय आवागमन बहाल करने जा रहे थे। इन प्रतिबंधों का असर अर्थव्यवस्था, कुछ क्षेत्रों मसलन, वायुसेवा, होटल एवं टूरिज़्म पर बहुत पड़ेगा, जो पहले ही पिछले दो सालों से काफी प्रभावित हुए हैं। चूंकि डेल्टा वेरियंट ने भारत को अचानक आन घेरा था, इसलिए नये रूपांतर पर काफी सतर्क रहना होगा। तमाम जरूरी कदम उठाकर, संभावित तीव्र उछाल के मद्देनजर स्वास्थ्य तंत्र को तैयार रखना, साथ ही अन्य आवश्यक स्वास्थ्य सेवाएं भी बहाल रखने के उपाय करने होंगे। लॉकडाउन और आवागमन रोकने जैसे कठोर कदम प्राप्त सबूतों के आधार पर हों न कि हड़बड़ी में।
व्यक्ति स्तर पर, मास्क पहनना, हाथ धोना और शारीरिक दूरी बनाए रखना, कमरों के वायु-चक्र में सुधार और भीड़-भाड़ वाली जगहों से दूर रहने से खतरा कम-से-कम रहता है और यह सबसे कारगर है। लेकिन पिछले कुछ महीनों में इस पर कोताही बढ़ी है, लोग या तो मास्क पहन नहीं रहे या सही ढंग से नहीं लगाते। सामाजिक आयोजन, धार्मिक एवं राजनीतिक सभाएं भी हर तरफ हो रही हैं, वहां भी उचित शारीरिक दूरी का ध्यान नहीं रखा जाता। कुछ राज्यों में चुनाव होने हैं, वहां कोविड व्यवहार संहिता सुनिश्चित करवाना चुनाव आयोग के लिए चुनौतीपूर्ण होगा।
ओमीक्रॉन ने विभिन्न वैक्सीनों की उपलब्धता के बावजूद टीकाकरण अंतर को भी उजागर किया है। जहां अफ्रीका में बहुत से देशों में अभी लोगों को टीका नहीं लग पाया वहीं कुछ विकसित देशों में तीसरी (बूस्टर) डोज़ लग रही है। जहां कहीं सबका टीकाकरण नहीं होगा, वहां वायरस को क्रमिक विकास करना आसान होगा और वह लगातार रूपांतर करता रहेगा। वैक्सीन का समान आवंटन सुनिश्चित करवाना अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी की जिम्मेवारी है। यूरोप जैसे विकसित देशों में भी वैक्सीन विरोधी मुहिम सक्रिय है, ऐसी मुखालफत का समुचित निवारण किया जाए। भारत में, टीका-रहित लोगों तक पहुंचने के प्रयास हों और जिन्हें केवल एक डोज़ लगी है, उन्हें दूसरी दी जाए। ओमीक्रॉन चेताता है कि कोविड महामारी अभी खत्म नहीं हुई है, यहां तक कि विराम भी नहीं लिया।
लेखक विज्ञान संबंधी विषयों के टिप्पणीकार हैं।