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रूस हारेगा!

हरिशंकर व्यास
महाबली रूस हार रहा है। वह यूक्रेन में हारेगा। बीस दिनों में पोल खुल गई है। वह कितना ही विनाश करे, यूक्रेन पर उसका कब्जा नहीं होगा। दुनिया की नंबर दो महाशक्ति के सैनिक अपने टैंकों, बख्तरबंद गाडिय़ों में जान बचाते हुए हैं। ये सैनिक अंधाधुंध गोलाबारी करके यूक्रेन को भारी बरबाद कर रहे हैं, पर अंत नतीजा रूस और राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का पतन है। असंभव नहीं जो रूस वापिस ढहे और पुतिन की दशा कज्जाफी या सद्दाम जैसी हो या सेब्रेनित्सा के करादिच व मलादिच की तरह वे अंतरराष्ट्रीय कोर्ट में नरसंहार अपराधी की तरह दिखलाई दें। वैसे पुतिन के पास वार्ता करके यूक्रेन से सेना हटा कर अपने को बचाने का विकल्प है लेकिन तानाशाह राष्ट्रपति हार मानने की फितरत लिए हुए नहीं होता। इसलिए उलटे हताशा और हार में पुतिन यूक्रेन के पड़ोसी नाटों देशों पर मिसाइल धमाके करके जंग फैला सकते हैं। अपने परमाणु हथियारों की धमकी और उपयोग से पासा बदलने का दांव चल सकते हैं।पर दांव नहीं चलेगा। पिछले बीस दिनों में रूस की सैनिक ताकत काफी चूक चुकी है, पाबंदियों से उसकी आर्थिकी बंध गई है और दुनिया का कोई समर्थवान राष्ट्र क्योंकि पुतिन को खुला समर्थन देता हुआ नहीं है तो उनका हौसला नहीं होगा कि वे आ बैल मुझे मार में लड़ाई फैलाएं! मामूली बात नहीं है जो वैश्विक मीडिया में पुतिन द्वारा चीन से मदद मांगने और इस पर चीन के इनकार की खबर है।

पुतिन को चीन का सहारा चाहिए लेकिन मदद मांगने की खबर आई नहीं की चीन ने फुर्ती से खंडन किया। जाहिर है चीन और उसके राष्ट्रपति शी जिनफिंग घबराए हुए हैं। बीस दिनों में चीन ने हर उस चर्चा व खबर का प्रतिवाद किया जो पुतिन और शी जिनफिंग का साझा बतलाने वाली थी। चीन का विदेश मंत्रालय रूस के साथ चट्टानी दोस्ती, सामरिक व सीमा और कारोबारी रिश्ते बतलाता हुआ है लेकिन ऐसी कोई खबर नहीं बनने दे रहा है, जिससे लगे कि अमेरिका-यूरोप का दिमाग ठीक करने के अपने उद्देश्यों में वह रूस का परोक्ष भी मददगार है! चौकाने वाली बात जो अमेरिका ने दो टूक शब्दों में कहा है कि हम चीन से बातचीत कर कह दे रहे हैं कि उसने रूस की मदद की तो प्रतिबंध लगेंगे। इस चेतावनी पर चीन भडका नहीं बल्कि कल ही रोम में अमेरिकी प्रतिनिधियों को समझाया कि वह रूस को कोई मदद नहीं दे रहा!

तो पुतिन मदद के लिए कहे तब भी चीन की मदद करने की हिम्मत नहीं होगी। साफ है पुतिन और रूस की मदद के लिए दुनिया में कोई उससे साझा नहीं बनाएगा। पुतिन-रूस पूरी तरह अलग-थलग, अछूत है। जैसे हिटलर का इटली और जापान से एलायंस बना था वैसा कुछ भी पुतिन नहीं बना सकते है। तब पुतिन और उनके सेनाधिकारियों को जंग और फैलाना कैसे संभव है? यह भी ध्यान रहे हिटलर का सैनिक अभियान तुरंत एक के बाद एक सफलता के साथ था। तब ब्रिटेन, अमेरिका और यूरोप के देश अलग-अलग राग लिए हुए थे। उस जैसी कोई स्थिति पुतिन के लिए नहीं है।

दरअसल पुतिन और उनके गले लगने वाले शी जिनफिंग, नरेंद्र मोदी, अर्दोआन आदि को भी उम्मीद रही होगी कि रूस सप्ताह भर में यूक्रेन पर कब्जा कर लेगा। भारत में यही तो नैरेटिव था कि कुछ ही घंटों में यूक्रेन की राजधानी कीव सहित सभी प्रमुख शहरों पर रूस का कब्जा होगा। यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की मारे जाएंगे या भाग जाएंगे। सरकार-प्रशासन तुरंत खत्म। खुद यूक्रेनी जनता बरबादी, अराजकता और जीवन की मुश्किलों में दम तोड़ रूसी सेना का स्वागत करेंगी। पुतिन कठपुतली सरकार बना कीव में रूसी झंडा फहरा देंगे।

हां, भारत के मीडिया का जो मूर्खतापूर्ण नैरेटिव हुआ वैसा चीन, भारत, पाकिस्तान, ईरान, तुर्की कईयों के विदेश मंत्रालय, प्रधानमंत्रियों और विदेश मंत्रियों ने सोचा। सबने माना महाशक्ति रूस के आगे यूक्रेन और यूक्रेनी लोगों की भला क्या औकात। जेलेंस्की ने जबरदस्ती का पंगा लिया। वे नाटो देशों के बहकावे में रहे। रूस हमलावर नहीं, बल्कि जेलेंस्की जोकर!

ऐसा सोचने वालों ने कौम, नस्ल, देश के मिजाज पर नहीं विचारा। यह नहीं बूझा कि यूक्रेन के लोग तीस सालों से लगातार तानाशाह रूस से मुक्ति, आजादी की फडफ़ड़ाहट में पके हैं, जबकि रूस के लोग, वहां की सेना वापिस सोवियत संघ के वक्त की अधिनायकवादी तासीर में लौट बीस सालों से पुतिन के कारण बुजदिल, भयाकुल बेबसी में जीवन गुजारते हुए है। पुतिन ने तेल-गैस की कमाई से अपने दर्जन अंबानी-अडानी भले बना लिए हों, मॉस्को और महानगरों में चकाचौंध भले हुई हो और राष्ट्रवादी-देशभक्ति का प्रोपेगेंडा भी चौतरफा चला लेकिन गुलामी में घुट कर जीने वाले लोगों का मनोबल अपने आप चुपचाप भयाकुल, कायर और आश्रित, भूखा हुआ करती है तो ऐसी मनोदशा वाले रूसी सैनिक क्या व कितना लड़ सकेंगे? तभी सोचें टैंकों की लंबी कतार के बावजूद यूक्रेन के असैनिक लड़ाकों की बाधाओं में रूसी सैनिक पस्त, ठहरे-ठिठके हुए है।

एक वैश्विक संस्था का आकंडा है कि 14 मार्च तक यूक्रेनी सेना को हुए हथियार-आयुधों के नुकसान से चार गुना अधिक नुकसान रूसी सेना को हुआ है। यूक्रेन ने रूस के कोई 1,054 आयुधों (टैक, बख्तरबंद गाडिय़ों, हेलीकॉप्टर-विमान, एंटी टैंक मिसाइलों) को तबाह किया है वहीं रूसी सेना से उसको हुआ नुकसान एक-चौथाई है।
सोचें, रूसी मिसाइलों के धमाकों, विध्वंस में मारियुपोल, खारकीव, मिकोलाइव और राजधानी कीव आदि शहरों का भुर्ता बना दिखता है। बिल्डिंगों, आवासीय कॉम्पलेक्स, अस्पताल आदि पर हमले मगर लोकल प्रशासन, फायर ब्रिगेड, कर्मचारी, स्वयंसेवक, पुलिस-सेना सब उसके बाद जिम्मेवारी और बचाव-राहत काम संभाले हुए। सीरिया की तरह के फोटो नहीं की राहत-बचाने वाले कहीं नहीं। यूक्रेन के मारियुपोल में मैटरनिटी वार्ड पर हमले के बाद बच्चों और औरतों को प्रशासन के चेहरे जैसे बाहर निकालते हुए थे, उससे जाहिर है कि न जनता का दम टूटा है और न प्रशासन-सरकार का। मारियुपोल पर रूसी कब्जा होते हुए भी लड़ाई जारी!

उस नाते लगता है जैसे अफगानिस्तान के आजाद ख्याल कबीलाईयों ने अधिनायकवादी सोवियत संघ की गुलाम-भयाकुल जनता की सेना को खदेड़ा, वैसे ही यूक्रेन में आजादी की जिद्द ठाने लोग पुतिन का ऐसा भुर्ता बनाएंगे कि रूस का वापिस बिखराव नामुमकिन नहीं है। निश्चित ही पुतिन एटमी हथियारों के जखीरे की चाबी लिए हुए हैं मगर ध्यान रहे गोर्बाचेव का सोवियत जखीरा भी विशाल था। फिर अब जिस रफ्तार से रूसियों का जीना प्रतिबंधों से घायल है और पुतिन के अडानी-अंबानी कंगले-बरबाद होते हुए हैं तो क्रेमलिन के भीतर भी, सेनाधिकारी, रूसी एलिट अपने को बचाने के लिए पुतिन पर लड़ाई रोकने, पीछे हटने का दबाव अनिवार्यत: बनाएंगे।

इसलिए आश्चर्य नहीं जो यूक्रेनी सेना से हथियार रखवाने, जेलेंस्की के सरेंडर जैसी शर्तों को छोड़ कर पुतिन अब इजराइल से लेकर तुर्की तक को पंच बनाने, रूसी-यूक्रेनी प्रतिनिधियों में बातचीत करवा रहे हैं। पुतिन को समझ आ गया होगा कि पूरे यूक्रेन पर रूस का कब्जा संभव नहीं है। राजधानी कीव को तबाह करके खत्म कर दें तब भी पोलैंड की सीमा से सटे पश्चिमी यूक्रेन में लड़ाई होती रहेगी और कब्जा हुए इलाके में रूसी सेना को छापामारों से घायल होते रहना होगा। सचमुच यूक्रेन में सेना भेजने से पहले पुतिन ने जो भी हिसाब लगाया था वह हर तरह से गलत साबित है। सेना को यूक्रेन में लडऩा पड़ रहा है। रूस के भीतर नाराजगी बन रही है। दुनिया में पुतिन और रूस दोनों अछूत हो गए हैं। पूरा यूरोप व पश्चिमी जमात एकजुट है तो यूक्रेन में विदेश से लड़ाके पहुंच रहे हैं तो हथियारों की, पैसे की मदद भी।

इसलिए इंतजार करें कि पुतिन किस रूप में अपनी हार को मानेंगें? वे और पागलपन करेंगे या झुकेंगे? पश्चिमी देश और यूरोप उन्हे खत्म करेंगे या पीछे हटने का मौका दे कर रूस को जर्जर-अस्थिर बनाएंगे?

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