पिथौरागढ़: इस साल भी कोरोना की भेंट चढ़ा इंडो-चाइना ट्रेड, सैकड़ों परिवारों के सामने रोजी-रोटी का संकट
भारतीय व्य़ापारी चीन की तकलाकोट मंडी से सामान के बदले अपनी जरूरत की चीजें लाते थे।
भारत-चीन युद्ध के बाद 1991 से 2019 तक इंडो-चाइना ट्रेड बदस्तूर जारी रहा। लिपू पास से होने वाले इस ट्रेड में उच्च हिमालयी इलाकों के सैकड़ों व्यापारी शिरकत करते थे।
पिथौरागढ़। कोरोना वायरस के चलते इस साल भी इंडो-चाइना ट्रेड पर संकट के बादल मंडरा गए हैं। बीते 30 सालों में ये पहली बार होगा जह लगातार दो सालों तक भारतीय व्यापारी चीन की मंडी नही जा पाएंगे। वस्तु विनिमय के आधार पर होने वाला इंडो-चाइना ट्रेड जहां खुद में अनौखा व्यापार है, वहीं इससे सैकड़ों परिवारों की रोजी-रोटी भी जुड़ी है। भारत-चीन युद्ध के बाद 1991 से 2019 तक इंडो-चाइना ट्रेड बदस्तूर जारी रहा। लिपू पास से होने वाले इस ट्रेड में उच्च हिमालयी इलाकों के सैकड़ों व्यापारी शिरकत करते थे। ये व्यापारी घोड़े-खच्चरों से चीन तक अपना सामान पहुंचाते थे और इन्हीं की मदद से चीन से भी सामान लाते थे। लेकिन बीते साल की तरह इस साल भी कोरोना की मार इंटरनेशनल ट्रेड पर पड़ी है। आमतौर पर इंडो-चाइना ट्रेड जून में शुरू हो जाता था, लेकिन इस बार विदेश मंत्रालय से कोई निर्देश नहीं मिले हैं। डीएम आनंद स्वरूप ने बताया कि ट्रेड को लेकर अभी तक केद्र सरकार की ओर कोई दिशा निर्देश नहीं मिला है। ऐसे में तय है कि इस साल भी इंडो-चाइना ट्रेड नहीं होगा।
भारतीय व्य़ापारी चीन की तकलाकोट मंडी से सामान के बदले अपनी जरूरत की चीजें लाते थे। चीन ने लाए सामान के जरिए ही गुंजी और उसके आस-पास के गांवों की जरूरतें पूरी होती हैं। गुंजी भले ही भारत की सबसे बड़ी बॉर्डर मंडी हो, बावजूद इसके यहां का बाजार चीनी सामान से पटा रहता था। आलम ये था कि यहां भारत के सामान के मुकाबले चीनी सामान सस्ता मिलता है। यही नहीं तीन महीने तक होने वाले ट्रेड के दौरान गुंजी मंडी पूरी तरह आबाद भी रहती थी। लेकिन बार यहां हर तरफ सन्नाटा पसरा है।
लिपु पास से होने वाले ट्रेड का खासा महत्व रहा है
भारतीय व्यापारी ईश्वर सिंह का कहना है कि लगातार दो सालों तक ट्रेड नहीं होने से बॉर्डर के सैकड़ों व्यापारियों के सामने आर्थिक संकट गहरा गया है। लिपु पास से होने वाला इंडो-चाइना ट्रेड बॉर्डर इलाकों की अर्थ व्यवस्था का केन्द्र भी है। चीन के साथ भारत का वस्तु विनिमय के आधार पर स्थलीय ट्रेड सिर्फ उत्तराखंड और हिमाचल से होता है। लेकिन व्यापारियों की संख्या के लिहाज से लिपु पास से होने वाले ट्रेड का खासा महत्व रहा है।