Home राजनीति मायावती का फॉर्मूला रहा हिट, आजमगढ़ में हार कर भी कैसे जीत...

मायावती का फॉर्मूला रहा हिट, आजमगढ़ में हार कर भी कैसे जीत गई बसपा?

लखनउ। लोकसभा उपचुनावों में समाजवादी पार्टी का गढ़ माने जाने वाले आज़मगढ़ में भाजपा के प्रत्याशी निरहुआ की जीत और अखिलेश के चचेरे भाई धर्मेंद्र यादव की हार के कारणों की तलाश शुरू हो गई है। कुछ लोग अखिलेश के आज़मगढ़ में प्रचार न करने को इस हार का एक कारण बताते हैं लेकिन जब उनके भाई धर्मेंद्र यादव से अपनी हार के कारणों के बारे में पूछा गया तो उन्होंने बहुजन समाज पार्टी की ओर इशारा किया।

नतीजों के तुरंत बाद स्थानीय मीडिया द्वारा धर्मेंद्र यादव से पूछा गया कि उनकी हार के दो बड़े कारण क्या गुड्डू जमाली-बीएसपी-बीजेपी और प्रशसन हैं.? तो इसके जवाब धर्मेंद्र यादव ने कहा, शाह आलम उर्फ़ गुड्डू जमाली तो एक मोहरा हैं। गुड्डू जमाली के बारे में मैंने पूरे चुनाव अभियान में कुछ नहीं कहा क्योंकि वो एक मोहरा हैं। इनके बड़े खिलाड़ी और लोग हैं जो राष्ट्रपति चुनाव में फ़ैसले लिए हैं दो दिन पहले और भी कई मौक़ों पर फ़ैसले लिए हैं। चार बार मुख्यमंत्री भी बने हैं। यह भी कहा है कि सपा को हराने के लिए भाजपा को जिताना पड़े तो जीता दो।
मीडिया से बातचीत में उन्होंने कहा, हम लोग इतनी बात कह सकते हैं कि, हम लोग शायद अपने माइनॉरिटी (मुसलमान) भाइयों को समझाने में असफल हुए। प्रयास बहुत किया, लेकिन आज मुझे उम्मीद है कि इस परिणाम के बाद शायद हमारे माइनॉरिटी भाइयों और बहनों की ज़रूर आँख खुलेगी कि आख़िर बहुजन समाज पार्टी जिन उम्मीदवारों के साथ जिस तरह से चुनाव लड़ रही थी, उसका कारण क्या था, कम से कम आज आखें खुल जाएं। बसपा के प्रत्याशी शाह आलम उर्फ़ गुड्डू जमाली को दो लाख 66 हज़ार से अधिक वोट मिले हैं। धर्मेंद्र यादव को तीन लाख चार हज़ार से अधिक वोट मिले और विजेता रहे निरहुआ को तीन लाख 12 हज़ार से अधिक वोट मिले।

अपने प्रत्याशी गुड्डू जमाली की हार के बावजूद मायावती ने ट्विटर पर उनकी प्रशंसा की। मायावती ने ट्वीट किया, बीएसपी के सभी छोटे-बड़े कार्यकर्ताओं, पदाधिकारियों तथा पार्टी प्रत्याशी शाह आलम उर्फ़ गुड्डू जमाली आदि ने आज़मगढ़ लोकसभा उपचुनाव जिस संघर्ष व दिलेरी के साथ लड़ा है उसे आगे 2024 लोकसभा आम चुनाव तक जारी रखने के संकल्प के तहत चुनावी मुस्तैदी यथावत बनाये रखना भी ज़रूरी. उन्होंने लिखा, उपचुनावों को अधिकतर सत्ताधारी पार्टी ही जीतती है, फिर भी आज़मगढ़ लोकसभा उपचुनाव में बीएसपी ने सत्ताधारी भाजपा व सपा के हथकण्डों के बावजूद जो कांटे की टक्कर दी है वह सराहनीय है। पार्टी के छोटे-बड़े सभी ज़िम्मेदार लोगों व कार्यकर्ताओं को और अधिक मज़बूती के साथ आगे बढ़ना है।

मायावती कहती हैं, इस परिणाम ने एक बार फिर से यह साबित किया है कि केवल बीएसपी में ही यहां भाजपा को हराने की सैद्धान्तिक व ज़मीनी शक्ति है। यह बात पूरी तरह से ख़ासकर समुदाय विशेष को समझाने का पार्टी का प्रयास लगातार जारी रहेगा ताकि प्रदेश में बहुप्रतीक्षित राजनीतिक परिवर्तन हो सके। सिर्फ़ आज़मगढ़ ही नहीं बल्कि बीएसपी की पूरे यूपी में 2024 लोकसभा आम चुनाव के लिए ज़मीनी तैयारी को वोट में बदलने हेतु भी संघर्ष व प्रयास लगातार जारी रखना है। इस क्रम में एक समुदाय विशेष को आगे होने वाले सभी चुनावों में गुमराह होने से बचाना भी बहुत ज़रूरी।

2014 में भी गुड्डू जमाली मुलायम सिंह यादव के ख़िलाफ़ चुनाव लड़े थे. उस समय उन्हें दो लाख 66 हज़ार वोट मिले थे और वो तीसरे नंबर पर थे। 2019 में बसपा ने आज़मगढ़ में अपना सारा वोट सपा को ट्रांसफ़र कर अखिलेश यादव को दो लाख 59 हज़ार वोटों से जिताया था। 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा और बसपा का गठबंधन था। यह आंकड़े इस ओर इशारा करते हैं कि गुड्डू जमाली की आज़मगढ़ की राजनीति में अपनी एक पहचान है जिसका फ़ायदा बसपा को भी मिलता रहा है।

मायावती के बयान के बारे में वरिष्ठ पत्रकार शादाब रिज़वी कहते हैं, वो इस बयान से दो चीज़ें कर रही हैं. सफ़ाई देने के साथ-साथ वो मुसलमानों को ये संदेश देना चाहती हैं कि आपने 2022 में विधानसभा चुनाव में वोटिंग की लेकिन अकेले मुस्लिम वोट से बीजेपी नहीं हार सकती, क्योंकि यादवों में कहीं न कहीं सेंध लगी हुई है। वो ये मैसेज देना चाह रही हैं कि मुसलमानों की बात जो वो कह रही हैं, वो बात मुसलमानों की समझ में आ गई है। इसलिए आज़मगढ़ में मुसलमानों ने बसपा को पसंद किया है. इसलिए इतना बड़ा वोट मिला है।

अपने प्रत्याशी की हार के बावजूद मायावती को ऐसा बयान देने की ज़रुरत क्यों महसूस हुई? इस बारे में शादाब रिज़वी कहते हैं, बार-बार कहा जा रहा है की कहीं न कहीं ईडी और जांच के नाम पर मायावती डरी हुई हैं. इसलिए वो बीजेपी का समर्थन कर रही हैं। कहा जा रहा है कि उन्होंने राष्ट्रपति पद के लिए द्रॉपदी मुर्मू का समर्थन किया है तो उनका ये स्टैंड बीजेपी के लिए है। रामपुर में भी उन्होंने अपना उम्मीदवार नहीं उतारा जिससे ये संदेश गया कि बीएसपी कहीं न कहीं बीजेपी को सपोर्ट कर रही है। वो सफ़ाई देने की कोशिश कर रही हैं कि वो महिला हैं और एक आदिवासी महिला का सपोर्ट कर रही हैं क्योंकि बसपा की राजनीति ही दलितों और आदिवासियों के लिए है।

2019 के लोकसभा चुनाव में आज़म ख़ान रामपुर सीट से जीते थे। प्रमोद निरंकारी के मुताबिक़ ज़िले में बसपा का कुल दो लाख 25 हज़ार जाटव वोट हैं, और 2019 में जितने भी वोट पड़े थे वो सौ प्रतिशत आज़म ख़ान को ट्रांसफ़र हुए थे. तो इस बार उस कैडर के वोट का क्या हुआ? इस पर प्रमोद निरंकारी कहते हैं, उसने वोट नहीं दिया. 2019 में वोट प्रतिशत 65 था. इस बार लगभग 41 प्रतिशत है. उसका एक कारण यह रहा कि हमारा वोटर शांत रहा। तो क्या बसपा की रणनीति से भाजपा को फ़ायदा मिला और आज़म ख़ान के चुने हुए प्रत्याशी आसिम राजा हार गए..? इस पर प्रमोद निरंकारी कहते हैं, ष्ऐसा कुछ नहीं है. बहन जी जो भी निर्णय लेती हैं पार्टी के हित में लेती हैं। उन्होंने किसी पार्टी के नुक़सान और फ़ायदे के लिए नहीं किया. बहनजी हमेशा अपनी पार्टी के फ़ायदे के लिए सोचती हैं।

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