अनोखा मंदिर: जानिए आखिर कैसे माता अनसूया के दर्शन से निसंतान दंपतियों की भर जाती है गोद
चमोली। उत्तराखंड के चमोली की मंडल घाटी के घने जंगलों के बीच माता अनसूया का भव्य मंदिर है, जो कि अपनी खूबसूरती के साथ निसंतान दंपतियों की मनोकामना पूरी करने के लिए देशभर में पहचान रखता है। यही नहीं, संतानदायिनी के रूप में प्रसिद्ध माता अनसूया के दरबार में सालभर निसंतान दंपति संतान कामना के लिए पहुंचते हैं। माना जाता है कि शक्ति सिरोमणि माता अनसूया के दरबार से कोई खाली हाथ नहीं लौटता है।
माता अनसूया मंदिर के पुजारी प्रवीन सैमवाल के मुताबिक, माता न सिर्फ निसंतान लोगों की कामनापूर्ण करती है बल्कि देवता भी माता अनसूया को नमन करते हैं। बता दें कि प्रकृति की गोद में बसा यह स्थान चारों ओर से ऊंची-ऊंची पर्वत श्रृंखलाओं से सुशोभित है, जोकि हर किसी को मनमोह लेता है।
ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने ली थी माता की परीक्षा
अनसूया मंदिर के पुजारी प्रवीन सैमवाल ने बताया कि यह स्थान बद्री और केदारनाथ के बीच स्थित है। उन्होंने बताया कि महर्षि अत्रि मुनि की पत्नी अनसूया की महिमा जब तीनों लोक में होने लगी तो पार्वती, लक्ष्मी और सरस्वती के अनुरोध पर परीक्षा लेने ब्रह्मा, विष्णु, महेश पृथ्वीलोक पहुंचे थे। इसके बाद साधु भेष में तीनों ने अनसूया के सामने निर्वस्त्र होकर भोजन कराने की शर्त रखी थी। दुविधा की इस घड़ी में जब माता ने अपने पति अत्रि मुनि का स्मरण किया तो सामने खड़े साधुओं के रूप में उन्हें ब्रह्मा, विष्णु और महेश खड़े दिखाई दिए। इसके बाद उन्होंने अपने कमंडल से जल निकालकर तीनों साधुओं पर छिड़का तो वह छह महीने के शिशु बन गए थे। इस बाद माता ने शर्त के मताबिक, न सिर्फ उन्हें भोजन कराया बल्कि स्तनपान भी कराया था। वहीं, पति के वियोग में तीनों देवियां दुखी होने के बाद पृथ्वीलोक पहुंचीं और माता अनसूया से क्षमा याचना की। इसके बाद तीनों देवों ने भी अपनी गलती को स्वीकार कर माता की कोख से जन्म लेने का आग्रह किया। इसके बाद तीनों देवों ने माता को दो वरदान दिए। इससे उन्हें दत्तात्रेय, दुर्वासा ऋषि और चंद्रमा का जन्म हुआ, तो दूसरा वरदान माता को किसी भी युग में निसंतान दंपित की कोख भरने का दिया। यही नहीं, वजह है कि यहां जो कोई भी संतान की कामना के लिए आता है, वह खाली हाथ नहीं रहता।
माता अनसूया मंदिर के प्रमुख पुजारी प्रवीन सैमवाल।
वहीं, अनसूया ट्रस्ट के उपाध्यक्ष विनोद राणा ने कहा कि मैं करीब 22 साल से मां की सेवा कर रहा हूं। माता के दरबार से कोई खाली हाथ लौटकर नहीं जाता। जबकि घने जंगलों के बीच बसे मंदिर परिसर को लेकर उन्होंने कहा कि यहां भालू और अन्य जंगली जानवर जरूर रहते हैं, लेकिन आज तक किसी भक्त के साथ कोई हादसा नहीं। जबकि मंदिर की सुरक्षा को लेकर कहा कि यहां क्षेत्रपाल की अहम भूमिका रहती है और उनके 50 से ज्यादा रूप हैं।
दत्तात्रेय देव भूमि सेवा ट्रस्ट के समाजसेवी ऋषि कुमार विश्नाई और अनसूया ट्रस्ट के उपाध्यक्ष विनोद राणा।
दत्तात्रेय देव भूमि सेवा ट्रस्ट ने की ये अपील
दत्तात्रेय देव भूमि सेवा ट्रस्ट चलाने वाले समाजसेवी ऋषि कुमार विश्नाई ने बताया कि माता के दरबार में वैसे तो हर किसी को आशीर्वाद मिलता है, लेकिन यहां की खास मान्यता निसंतान दंपति की गोद भरने के कारण है। उन्होंने कहा कि यहां जो भी आता है मां उसकी मुराद पूरी जरूर करती है। इसके अलावा विश्नाई ने बताया कि माता अनसूया परिसर में भक्तों के रुकने या आराम करने का कोई खास इंतजाम नहीं है, इसलिए हम धर्मशाला बनाने के साथ एक गौशाला का निर्माण भी कर रहे हैं, जो कि पूरा होने के करीब है। वहीं, उन्होंने देशभर के लोगों से अपील करते हुए कहा कि आप सब माता के दर्शन करने के लिए चमोली के मंडल घाटी के इस पावन मंदिर में जरूर पदारें।
जानें माता की पूजा की विधि
निसंतान दंपति की कोख भरने के लिए माता के मंदिर की पहचान है। यहां संतान की चाह रखने वालों को शाम तक पहुंचना होता है। इसके बाद उन्हें पूजापाठ के बाद रात भर मंदिर में ही बैठाना होता है। इस दौरान अनसूया माता महिला को दर्शन देती हैं। इसके बाद महिला वहां से उठकर स्नान वगैराह करती है और फिर सूर्यादय के बाद एक बार फिर पुजारी पूजा करवाते हैं। इस दौरान जो पूजा सामान आप चढ़ाते हैं, उसमें से श्रीफल समेत कुछ चीजें आपको वापस मिलती हैं,जिन्हें आप अपने घर में मंदिर में जगह देते हैं। यही नहीं, जब आपकी मुराद पूरी हो जाती है, तो आप फिर से माता के दर्शन करने जा सकते हैं।
ऐसे पहुंच सकते हैं माता के मंदिर
चमोली जिले की मंडल घाटी तक वाहन से आप पहुंच सकते हैं। इसके बाद अनसूया मंदिर तक पहुंचने के लिए आपको पैदल यात्रा करनी होगी। अगर आप उत्तराखंड के बाहर से आ रहे हैं तो ऋषिकेश तक ट्रेन से पहुंच सकते हैं। इसके बाद श्रीनगर के रास्ते गोपेश्वर से होते हुए मंडल तक बस और टैक्सी से पहुंच सकते हैं। फिर मंडल से माता के मंदिर तक पांच किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई है। प्रकृति की गोद में बसा यह स्थान चारों ओर से ऊंची-ऊंची पर्वत श्रृंखलाओं से सुशोभित है, तो इसके नजदीक ही अत्रि मुनि आश्रम स्थित है, जो कि अमृत गंगा का उद्गम स्थल भी है।