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ब्रिटेन एक कहानी है!

हरिशंकर व्यास
ब्रिटेन क्या है लोकतंत्र है या राजतंत्र सेकुलर है या ईसाई देश गोरों का घर या सभी नस्लों का घरौंदा वह महाशक्ति या क्षेत्रीय शक्ति शोषक देश या सभ्य देश पूंजीवादी या जनकल्याणकारी राष्ट्रवादी देश या वैश्विक देश दुनिया की वित्तीय राजधानी या बौद्धिक राजधानी दिखावों का देश या रियलिटी को जीता हुआ देशज्.ऐसे असंख्य सवाल महारानी एलिजाबेथ की मृत्यु और महाराज चार्ल्स तृतीय के राज्याभिषेक की तस्वीरों से उभरते हैं। सोचें, इक्कीसवीं सदी में राजशाही का एक दरबार और ईसाई धार्मिक अनुष्ठानों के साथ नए राजा का राज्याभिषेक। ऊपर से राजा, रानी, प्रिंस, प्रिंसेस और प्रजा की भावविह्वल श्रद्धांजलि तो नए राजा का जयकारा भी! दुनिया के सभी देश, फिर भले वह ईसाई हो या इस्लामी या हिंदू या सेकुलर या यहूदी या रूस और चीन सभी ने महारानी को श्रद्धांजलि दी है। अधिकांश देशों के झंडे भी झुके। मानों पौने सात करोड़ लोगों के ब्रिटेन की आत्मा राजशाही हो। सबसे बड़ी बात जो अनुदारवादी ब्रितानी हो या उदारवादी, सभी इस भाव में गमगीन थे कि परिवार ने मातृसत्ता खो दी। मगर कोई बात नहीं लांग लिव किंग! लंदन की ‘द इकॉनोमिस्ट’ पत्रिका हो या प्रगतिशील-उदार अखबार ‘द गार्जियन’ सभी दिवंगत महारानी और नए महाराज के विमर्श में खोए हुए!

इसलिए ब्रिटेन का अर्थ गहरा है। ब्रिटेन एक कहानी है। वह कहानी, जिसकी निरंतरता, जिसका अच्छापन वक्त के साथ बढ़ता हुआ है, खिलता हुआ है। पृथ्वी पर इंसान की मानवीय याकि रामराज वाली कहानियों के कथानक यों तो स्कैंडिनेवियाई देशों स्वीडन, नार्वे, डेनमार्क या हिंद-प्रशांत क्षेत्र के न्यूजीलैंड जैसे देशों में भी है। मगर ब्रिटेन की कहानी कई कारणों से बेमिसाल है। ब्रिटेन का घर दुनिया की हर नस्ल, हर धर्म, हर रंग, हर मिजाज का घरौंदा है। मैं मनुष्य और उसकी गरिमा और मानव आजादी में फ्रांस को अनुकरणीय मानता हूं। लेकिन फ्रांस में अभी भी गोरों का दिल-दिमाग उतना परिष्कृत और संस्कारित नहीं हुआ है जो इक्कीसवीं सदी की जरूरत है। वहां अभी भी दक्षिणपंथी-घोर राष्ट्रवादी राजनीति है। बीसवीं और इक्कीसवीं सदी के इतिहास अनुभव में फ्रांस, जर्मनी, इटली, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जापान आदि ने लोकतंत्र में अपने नागरिकों को हर तरह आजाद, सशक्त बना कर उन्हें समान अवसर और खुशहाल जीवन दिया है। लेकिन इसके बावजूद ये देश रंग, नस्ल, राष्ट्रवादी बाड़ेबंदी से देश और नागरिकों को बाहर नहीं निकाल सके। इसी केटेगरी में स्कैंडिनेविया के रामराज्य देशों को मानना चाहिए। इन देशों ने भी अपनी सीमाओं में बाहरी लोगों कों नहीं आने दिया। प्रवासियों के लिए वह उदारता नहीं बनी, जो ब्रिटेन में सहज भाव दशकों से बनती हुई है।

मैं महारानी एलिजाबेथ के सत्तर साला राज की पहचान और उसकी उपलब्धि यह समझता हूं कि उनके वक्त में ब्रिटेन दुनिया की कहानी बना। ब्रिटेन में किसी ने इस बात की पड़ताल नहीं की है और इसलिए आंकड़ा नहीं है लेकिन यदि कोई खोजे तो सात दशकों का सबसे बड़ा तथ्य ब्रिटेन का वैश्विक मानवता का सेंटर बनना है। लंदन का वैश्विक सरोकारों का, आदर्श-सुकूनदायी वैश्विक जीवन का मानदंड बनना है। इसलिए महारानी के वक्त में ब्रिटेन बदला। दुनिया के तमाम इलाकों से, तमाम तरह के लोग ब्रिटेन में आकर बसे। लंदन, स्कॉटलैंड, पूरे ब्रिटेन में बाहरी लोगों को सूकून मिलता है। और यही बात नया ब्रिटेन बनाने, उसे मानवता की धरोहर बनाने की राष्ट्रशक्ति है। महारानी एलिजाबेथ के ही वक्त में अफ्रीका से हिंदू मूल के ऋषि सुनक का परिवार ब्रिटेन आ कर बसा। वहां भारत और पाकिस्तान मूल के असंख्य हिंदू और मुसलमान जा कर बसे।

उन सबका गजब योगदान! ऋषि सुनक हाल में प्रधानमंत्री बनने की कगार पर थे। मगर मौका लिज ट्रस को सरकार बनाने का मिला तो उसमें भी प्रवासी मूल के कई मंत्री चेहरे! सत्य-तथ्य है कि कंजरवेटिव पार्टी में लिज ट्रस बनाम ऋषि सुनक में नेता पद का कंपीटिशन हुआ तो किसी भी पार्टी नेता या कार्यकर्ता के मुंह से ऐसा एक भी शब्द, जुमला, भाव नहीं निकला कि ऐ इंडियन, ऐ हिंदू तुमने हाथ में लच्छा बांधा हुआ है इंडिया जा कर राजनीति कर!

मुझे इस प्रसंग में भारत की मौजूदा संस्कारहीन, चरित्रहीन हिंदू राजनीति की बात नहीं करनी चाहिएज् लेकिन दिमाग लिखते हुए अपने परिवेश का ध्यान बना डालता है। इसलिए लिख रहा हूं, याद करा रहा हूं कि ठिक विपरित नरेंद्र मोदी और अमित शाह व उनके भक्त भाजपा नेता क्या करते हैं राहुल गांधी के टी र्शट से लेकर उसे पप्पू, बाबा कहने जैसी टुच्ची बातें करके ये दुनिया में हमें, हमारी हिंदू राजनीति का टुच्चा चरित्र दिखला रहे हैं।

बहरहाल, गोरे ब्रितानियों ने महारानी के सत्तर सालों में अपने चरित्र, अपने संस्कारों को निखारा। मेरा मानना था, है और इसे लिख भी चुका हूं कि इस्लामी-मुगल राज के बाद अंग्रेजों का शासन हम हिंदुओं के लिए हवा का ताजा झोंका था। बतौर मालिक उन्होंने भारत को चाहे जितना लूटा हो लेकिन उनसे सैकड़ों सालों की गर्दिश में दबी हिंदू सभ्यता-संस्कृति का उत्खनन हुआ। अंग्रेज-यूरोपीय विद्वानों ने वेद, उपनिषद्, पुराण, इतिहास, समाज, संस्कृति से लेकर संस्कृत सबसे गर्द हटवाई। हिंदू स्मृतियों, संहिताओं पर सिविल नियम-कायदे बने। हिंदुओं में राजनीति, विचार, विचारधाराओं और आधुनिकता की चेतना के बुलबुले उठे। समाज-सुधार हुआ। कला-संस्कृति-साहित्य-संगीत की शास्त्रीयता उभरी, उनका विस्तार हुआ।

अंग्रेज हवा में भारत के आधुनिक अद्भुत मनीषी पैदा हुए। राजा रामोहन राय, महर्षि दयानंद सरस्वती, रामकृष्ण परमंहस, विवेकानंद, टैगोर, लाल-बाल-पाल-तिलक, महर्षि रमण, अरविंद और रामतीर्थ आदि से अध्यात्म-धर्म, स्वाधीनता की चेतना पैदा हुए। गुलाम-मुर्दादिल हिंदुओं में क्रांतिकारी, आंदोलनजीवी, निर्भय-निडर लोग पैदा हुए। आधुनिकता, ज्ञान-विज्ञान के झोंके बने। वह गजब ही काल था जो 1850 से 1950 के बीच भारतीयों में एक-के बाद एक ऐसे चेहरे पैदा हुए, जिनकी मानो रिले रेस दुनिया में हिंदू बुद्धि-संस्कृति-सभ्यता का झंडा गाढऩे का संकल्प लिए हुए थी। इस सत्य-तथ्य को नोट रखें कि तब हिंदुओं में एक होने, जात तोडऩे का, मुसलमान का भी नेतृत्व करने का समाज व राष्ट्र चिंतन हुआ था। सामूहिक लीडरशीप  के विकास के साथ ह्यूमनिस्ट, कम्युनिस्ट, समाजवादी, हिंदुवादी, पूंजीवादी जैसे आइडिया के विकल्पों की भारत में नर्सरियां बनीं थी! वह हिंदू पुनरूत्थान का स्वर्णकाल था।

हां, भारत को, दक्षिण एशिया को अंग्रेज गोरों से वह सब प्राप्त हुआ जो बाकी महाद्वीपों को उपनिवेशवाद में प्राप्त हुआ था। मगर यह उपमहाद्वीप का दुर्भाग्य, इसके बारह सौ साला इतिहास से बनी नियति जो गोरों ने ज्योंहि हमें आजादी दी हम एकल लीडरशीप, हिंदू-मुस्लिम ग्रंथि तथा भय-भूख के कलियुगी जीवन चरित्र में फिर लौट गए। उधार के टेंपलेटों, सत्ता की गुलामी और गोबर के संस्कारों में न केवल 75 वर्ष गंवा दिए, बल्कि भविष्य को गंवार-भक्त हिंदू राजनीति का गिरवी भी बना डाला।

फालतू की बात है कि 75 वर्षों में ब्रिटेन का सूर्य अस्त हुआ। ब्रिटेन पहले भी दुनिया के समय का, दुनिया की घड़ी का निर्धारक था और आज भी है। उसकी विश्वगुरूता फर्जी नहीं है। दुनिया के इंसानी, मानवी जीवन को जीने की चाहना वाले हर समझदार मानव के लिए ब्रिटेन सपना है। कामना है। ब्रिटेन के ऑक्सफोर्ड-कैंब्रिज आज भी शिक्षा-ज्ञान-विज्ञान-रिसर्च के प्रतिमान हैं। आज भी वह शेक्सपियर का वैश्विक थियेटर है। लंदन का वेस्टएंड और उसके नाटक न्यूयॉर्क के वेस्टएंड से जलवे में बीस हैं उन्नीस नहीं। पेरिस को छोड़ें तो लंदन दुनिया की पर्यटक राजधानी है। सैर-सपाटे की मनभावक-सुकून वाली मंजिल है। रंगमंच, साहित्य, संगीत, संग्रहालयों, पुस्तकालयों, कलादीर्घाओं और वित्त तथा व्यापार की विश्व राजधानी है। इस्लामी देशों के अरब लोग हों या अफ्रीका का अश्वेत एलिट या रूसी और चाइनीज सबका मनभावक ठिकाना है लंदन। सबकी पनाहगाह है ब्रिटेन।

भला क्यों इसलिए कि ब्रिटेन जिंदादिल, संस्कारी गोरों का चरित्र है। इस चरित्र कथा में महारानी है महाराज है, बावजूद इसके राजपरिवार टैक्स देता है। किंग-क्वीन मुखिया है मगर न डफर, न प्रतीक और न सत्ता केंद्र। प्रधानमंत्री महारानी और महाराज को रिपोर्ट करेगा मगर वे उसे आदेश तो दूर सलाह भी नहीं देंगे। महारानी के लिए ट्रैफिक नहीं रूकता तो प्रधानमंत्री के लिए भी नहीं। वहां महाराज और प्रधानमंत्री कथित छप्पन इंची छाती का नहीं होता। फिर भी रियल सुपरपॉवर है। वहां का मीडिया महारानी या प्रधानमंत्री की गोदी में बैठा नहीं होता। महारानी, प्रधानमंत्री और मंत्री, प्रदेश मुख्यमंत्री वहां अपने नित नए महल नहीं बनाते। सदियों पुराना महारानी महल, संसद भवन और लंदन का दिल्ली के सेंट्रल विस्टा जैसा इलाका आज भी घास-फूस और बजरी के फुटपाथ की ओरिजिन शान है। गर्व है। महारानी और महाराज अपनी निश्चित आय पर जीते हैं तो टैक्स भी अदा करते हैं।

क्या यह सब कहानी नहीं है क्या यह कहानी नहीं जो स्कॉटलैंड यार्ड पुलिस, संसदीय समिति अपने विवेक से अपने प्रधानमंत्री के आचरण, लॉकडाउन के बावजूद उसके घर पर पार्टी होने की चर्चा की जांच करे और प्रधानमंत्री को दोषी पाए तो वह प्रधानमंत्री पार्टी, संसद और जनता के नैतिक दबाव में इस्तीफा दे!

यह सच्चाई भी जानें कि दुनिया के तमाम असंस्कारी, चरित्रहीन देशों से पहुंचे नागरिक ब्रिटेन में जा कर संस्कारी बन जाते हैं! क्यों और कैसे इसलिए कि शीर्ष का टॉप याकि राजा-रानी और प्रधानमंत्री और सत्ता सब भद्रता में जीते हैं। वे गालियां नहीं देते। वे देश की जनता को नहीं बांटते। वे नागरिकों का चरित्र बनाते है। सत्ता और पार्टियां ट्रोंल पैदा करने वाले लंगूर पैजा नहीं करती। वे डिबेट करते है, संसद लगातार चलती है तो राजनीति वहां सीबीआई- ईडी की लाठियों तथां खरीदफरोख्त की मंडी नहीं है। वहा नेता जनता को इवेंट मैनेजमेंट से उल्लू नहीं बनाते। उन पर राशन-नमक दे कर अहसान नहीं जताते। जाहिर है ब्रिटेन के समाज और उसके जनजीवन का पोर-पोर अंग्रेज लोगों, नागरिकों की सहजता, भद्रता, समानता, जिंदादिली व काबलियत की अंतरधारा में धडक़ता है।

हां, सत्य है कि अंग्रेज, मुसलमान, अफ्रीकी, हिंदू, चाइनीज कोई भी हो, ब्रिटेन की सडक़ों पर दिन में या आधी रात में सुनसान सडक़ या खाली मेट्रो में बेखौफ सफर करता है। न पुलिस का डर और न हिंसा-छीना-झपटी का वैसा खतरा जैसा अमेरिका में भी लोगों को होता है या दुनिया के तमाम देशों में होता है।
और सबसे बड़ी बात! सोचे, ब्रिटेन है बिना लिखित संविधान के! सिर्फ और सिर्फ परंपरा और उससे बनी व्यवस्थाओं, संस्कारों और चरित्र से है!

इसलिए कहानी है ब्रिटेन! महारानी एलिजाबेथ के सत्तर सालों में ब्रिटेन के गोरों का भलापन बढ़ा। चाय-बिस्कुट की उनकी इवनिंग टी की रौनक बढ़ी। मौसम के मिजाज में जीवन के सुख लेना बढ़ा। समाज के अलग-अलग वर्गों की तासीर में सभी जनों का अपने-अपने काम में खोए रहना बढ़ा। ब्रिटेन की कहानी में वे कोई विलेन नहीं है जो तेरा-मेरा, मैं दलित तू फॉरवर्ड, मैं देशभक्त तू देशद्रोही, मैं ईसाई तू हिंदू या मुसलमान जैसा रागद्वेष बनवाता हुआ हो।
इसलिए ब्रिटेन पर सोचें तो सिर्फ यह सोचें कि ब्रिटेन जैसी कहानी क्या पूरी मानव सभ्यता की भी कभी बन सकती है।

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