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अपनी ही राजनीति में उलझी है कांग्रेस

अगले महीने राष्ट्रपति और उप राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव होने वाले हैं लेकिन लग नहीं रहा है कि कांग्रेस इस मामले में कोई पहल कर रही है। असल में कांग्रेस अभी अपनी ही राजनीति में उलझी है। उसे आंतरिक मसले निपटाने से फुरसत नहीं है इसलिए वह विपक्ष को एकजुट करने की कोई पहल नहीं कर पा रही है। इस बीच राज्यसभा के चुनाव भी आ गए, जिसमें कांग्रेस को किसी तरह से अपने सहयोगियों से लड़-भिड़ कर एकाध अतिरिक्त सीटें हासिल करनी हैं। हालांकि वह प्रयास भी सिरे नहीं चढ़ रहा है। डीएमके ने जरूर एक सीट दी है लेकिन राजद ने सीट नहीं छोड़ी और जेएमएम ने भी अपना उम्मीदवार देने का ऐलान किया है।

इस बीच दूसरी पार्टियां विपक्षी एकजुटता के लिए प्रयास कर रही हैं। हैरानी की बात है कि कांग्रेस पार्टी के इतने नेता हैं, फिर भी कोई पहल नहीं हो रही है, जबकि क्षेत्रीय पार्टियों के नेता अकेले होने के बावजूद देशाटन कर रहे हैं। जो पार्टियां कभी कांग्रेस के साथ गठबंधन में रही हैं या यूपीए का हिस्सा रही हैं वो अलग राजनीति कर रही हैं। उनकी आपस में मुलाकातें हो रही हैं और भाजपा विरोध का मोर्चा बन रहा है लेकिन इस पूरे प्रयास में कांग्रेस कहीं शामिल नहीं है। टीआरएस, सपा, जेडीएस, तृणमूल कांग्रेस, राजद, जेएमएम आदि भाजपा विरोधी पार्टियों के नेता आपस में मिल रहे हैं पर कांग्रेस कोई पहल नहीं कर रही है।

के चंद्रशेखर राव ने बेंगलुरू जाकर पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा से मुलाकात की और भाजपा विरोधी मोर्चा बनाने के बारे में बात की। एक तरफ राव जेडीएस के साथ मोर्चा बनाने की बात कर रहे हैं तो दूसरी ओर कांग्रेस के बड़े नेता और पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धरमैया ने कहा कि कांग्रेस और जेडीएस का कोई तालमेल नहीं होगा। सोचें, चुनाव अगले साल मई में होने हैं और अगर अभी सिद्धरमैया इस तरह की घोषणा नहीं करते तब भी काम चल सकता था। कांग्रेस राष्ट्रपति चुनाव के लिए जेडीएस से बात कर सकती थी। लेकिन कांग्रेस के नेता खुद ही सहयोगियों से बातचीत का रास्ता बंद करते जा रहे हैं।

उधर महाराष्ट्र में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष नाना पटोले ने महा विकास अघाड़ी सरकार में शामिल दोनों सहयोगी पार्टियों- शिवसेना और एनसीपी के खिलाफ मोर्चा खोला है। वे आगे के सारे चुनाव अकेले लडऩे की बात बार बार कह रहे हैं। इसी तरह पश्चिम बंगाल में कांग्रेस ने अधीर रंजन चौधरी को प्रदेश अध्यक्ष बना रखा है, जिनका एकमात्र एजेंडा ममता बनर्जी से लडऩा है। ऐसा नहीं है कि ममता बनर्जी के खिलाफ लड़ाई छेड़ कर वे कांग्रेस को मजबूत कर रहे हैं। कांग्रेस मजबूत हो रही होती तो उनका लडऩा समझ में आता। लेकिन एक तरफ कांग्रेस खत्म हो रही है और दूसरी ओर ममता से दूरी इतनी बढ़ती जा रही है कि आगे तालमेल और मुश्किल हो जाएगा। बिहार में राजद के साथ कांग्रेस का तालमेल खत्म हो गया है और झारखंड में भी राज्यसभा की एक सीट को लेकर जेएमएम-कांग्रेस में तनातनी चल रही है।

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