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कैसे बनें भारत महान ?

अजय दीक्षित
आज एक सवाल पूछिए खुद अपने आपसे  ।  कभी मानिए अलादीन का चिराग मिल जाये आपको, और सिर्फ एक ही वरदान मांगने की छूट हो तो क्या मांगेंगे आप उससे ? जीवन की सबसे बड़ी अभिलाषा क्या है आपकी? वो अभिलाषा क्या है जो आपको दिन रात याद आती है, जिसने आपकी नींद चुरा ली है ? अगला सवाल यह है कि जो आप चाहते हैं कि हो जाए, वो ही क्यों चाहते हैं आप? आपकी जो इच्छा है क्यों है वही इच्छा, उसके पीछे का कारण क्या है? क्योंकि अगर ये स्पष्ट हो कि हम जो चाहते हैं, वही क्यों चाहते हैं, तो काम को अंजाम तक पहुंचाने का रास्ता निकल ही आता है तो समझना ये है कि आपके लिए कामयाबी का मतलब क्या है? क्या बदल जाएगा जब आप कामयाब हो जाएंगे? इन सवालों का सही-सही उत्तर दीजिए, खुद को जवाब दीजिए ताकि आपकी सफलता की राह आसान हो जाए। ये सवाल ऐसे हैं जो आपको, आप से मिलाएंगे।

क्या आप महत्वाकांक्षी हैं, और सफल हैं पर सफल होने के बावजूद वहां नहीं हैं जहां आप होना चाहते हैं? क्या आप पूर्णतया अनुशासित हैं? जवाब देने से पहले अनुशासन का मतलब भी समझ लीजिए। मान लीजिए कि मुझे कहा जाए कि मैंने पैदल चलते हुए एक नदी पार करनी है जिसका पुल एक किलोमीटर लंबा है। पुल के बीचोंबीच छोटे-छोटे पत्थरों का एक ढेर है, वहां से एक पत्थर उठाना है, नदी में फेंकना है और फिर आगे बढ़ जाना है, और ऐसा सात दिन तक लगातार करना है। अब मैं हर रोज़ पुल पैदल पार करते हुए बीच में पत्थरों के ढेर के पास रुक कर एक पत्थर उठाउंगा और उसे नदी में फेंक कर पुल की बाकी दूरी पार कर लूंगा। मैं एक साथ सात पत्थर नहीं उठाउंगा, हर रोज़ एक-एक पत्थर ही फेंकूंगा और अगर किसी दिन गलती से पत्थर फेंकना भूल गया तो वापिस आउंगा, पत्थर फेंकूंगा और तब समझंगा कि मेरा काम पूरा हुआ, ये नहीं सोचूंगा कि अगले दिन दो बार पत्थर फेंक लूंगा। ये समझना जरूरी है कि इस तरह के अनुशासन के बिना बड़ी सफलता हासिल नहीं हो सकती। अब यह सोचिए कि आप आज कहां हैं, सफलता के किस मुकाम पर हैं।

अगर वहां से आगे बढना है और अपनी मंजिल तक पहुंचना है तो सोच बदलनी होगी। इसके लिए आपको विश्लेषण करना होगा कि आपकी असफलता का कारण क्या है? इसे आपसे बेहतर कोई और नहीं जानता। इसलिए आप खुद ही विश्लेषण कीजिए और देखिए कि कौन से ऐसे कारण हैं जो आपको आगे बढने से रोक रहे हैं। क्या आपको टालमटोल की आदत है या आप कई सारे काम एक साथ करना चाहते हैं, यानी फोकस नहीं है। क्या आपके पास पूरा ज्ञान नहीं है या उस काम के लिए आवश्यक हुनर नहीं है? क्या आप सिर्फ सोचते ही रह जाते हैं। और काम शुरू ही नहीं होता? क्या आपको नशे की लत है, क्या आप सोशल मीडिया पर या गप्पों में समय बिता देते हैं, क्या आप कुछ अनचाहे वीडियो देखते रहते हैं या ऐसे किसी साथी के साथ समय बर्बाद करते हैं? अगर आपको खुद में न कोई कमी नजर आती है तो आपने अपने गलत स्वभाव को य बदलने के लिए अब तक क्या किया है? यह भी सोचिए कि क इस दौरान आपने क्या सही कदम उठाए? कौन सी गलतियां कीं? क्या करना चाहिए था जो आपने नहीं किया? अगर आप सफल नहीं हैं इसके कारण आपको कितनी परेशानियां झेलनी पड़ती हैं, कितना दुख होता है? जो कुछ भी गलतियां हुई क्या आप उन्हें ठीक कर पाए? यदि हां तो कैसे, यदि नहीं तो क्यों? आपका कौन सा फैसला गलत था? क्या नुकसान हुआ गलत फैसले से ? क्या सीखा है आपने उस गलती से क्या कर सकते हैं आप वैसी गलती दोबारा न करने के लिए? आपके गलत फैसले के कारण सफलता असफलता में बदल गई तो क्या महसूस हुआ? आपकी असफलता ने आपको कैसा नुकसान पहुंचाया?

ऐसे कौन से कारण हैं जो आपकी सफलता में अड़चन बन रहे हैं? आपकी वर्तमान समस्याएं कितनी पुरानी हैं और आपके अंदाज़े के मुताबिक अभी और कितने समय तक ये समस्याएं बनी रहेंगी ? इन समस्याओं को दूर करने के लिए आपको आज ही क्या करने की जरूरत है ? समझ लीजिए कि डर तो लगेगा ही लगेगा हर नई स्थिति में, डर को ही जोश बना लीजिए। सवाल ये भी है कि क्या आप अपना लक्ष्य प्राप्त करने के लिए काम कर रहे हैं या किसी खतरे से बचने के लिए काम कर रहे हैं? उदाहरण के लिए अगर आप जॉब में हैं तो क्या आप प्रोमोशन पाने के लिए काम करते हैं या नौकरी बचाए रखने के लिए काम करते हैं? अब सोचिए कि अगर आपके रास्ते से सारी कठिनाइयां हट जाएं तो आपका जीवन कितना बदल जायेगा ? क्या कुछ नयापन होगा उसमें ? समस्या ये है कि लोग दूसरों से तो झूठ बोलते ही हैं पर वो अपने आपसे ही झूठ बोलते रहते हैं । खुद को सच दिखाइये। हैल्थ एंड हैपीनेस गुरू के रूप में मैंने ये महसूस किया है कि डिप्रेशन होता नहीं है । हम शिकायती स्वभाव वाले बन जाते हैं तो धीरे-धीरे सफलता कम होती चलती है और डिप्रेशन की तरफ बढ़ते चले जाते हैं ।

दरअसल सफल लोग भी कई बार असफल होते हैं, पर वे काम से पीछे नहीं हटते । यह देखिए कि आपने पूरी कोशिश की कि नहीं, जरूरत होने पर मार्गदर्शन लिया कि नहीं, जहां सहायता चाहिए थी वहां सहायता मांगी या नहीं। आज हम इक्कीसवीं सदी में हैं और ये बातें कर रहे हैं कि हमारा देश अपना पुराना गौरव हासिल करेगा, भारत महान है, भारत विश्वगुरू है। भारत महान बने इससे बढक़र हमारे लिए और क्या खुशी हो सकती है? समझने की बात ये है कि हम सब खुद महान होंगे तो ही भारत महान होगा । 99 प्रतिशत बेईमान, फिर भी मेरा भारत महान’ व्यावहारिक रूप से संभव नहीं है । सबको ईमानदार होना पड़ेगा, सबको महान होना पड़ेगा। हम सिर्फ स्वतंत्रता दिवस पर अपने मुंह पर तिरंगा पोत लें और बाकी 364 दिन बेईमान बने रहें तो भारत कभी महान नहीं बनेगा ।

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